Tuesday, February 22, 2022

पर्दे

दिन भर ताकता हूँ बाहर

देखता हूँ चहल-पहल

बस का आना, बस का जाना

वॉक को निकलते पड़ोसी

युवा खेलते टेनिस

माताएँ टहलातीं बच्चे 


शाम होते ही 

गिरा देता हूँ पर्दे

कोई मुझे न देख ले

अंदर न देख ले


बाहर के उजाले में

अंदर का अंधेरा 

मुझे महफ़ूज़ रखता है 


बाहर के अंधेरे में

अंदर का उजाला 

डरता है 


राहुल उपाध्याय । 22 फ़रवरी 2022 । सिएटल 





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