मैं जो चाहूँ वो मैं पहनूँ
तुझे उठी क्यूँ तान है
जितना तेरा, उतना मेरा
सबका हिन्दुस्तान है
मज़हब का तू चश्मा पहने
रहता क्यूँ अनजान है
तेरे घर भी, मेरे घर भी
रहते सब इंसान हैं
नाहक बक-बक क्यूँ है करता
कहता ऊटपटाँग है
आज ये पहनूँ, कल वो पहनूँ
इससे क्यूँ परेशान है
जब जो चाहूँ वो मैं पहनूँ
ये मेरा अधिकार है
साड़ी, स्कर्ट, टॉप, सूट
हिजाब सब परिधान हैं
लड़ाई-झगड़े हैं हथकण्डे
ध्यान बँटाते यार हैं
काम निपटते ही ये सारे
होते अंतरध्यान हैं
आते-जाते नेता सारे
रंग बदलते घाघ हैं
आज किसी की रक्षा कर के
करते कल को ख़ाक हैं
रोज़ी-रोटी की ये सोचें
इनकी न औक़ात है
छुटपुट-छुटपुट मसलों से ही
होते मालामाल हैं
जब भी नेता मिलने आए
करते वादे लाख हैं
पाँच साल फिर खा-पी कर के
करते वो आराम हैं
राहुल उपाध्याय । 11 फ़रवरी 2022 । सिएटल
1 comments:
सटीक
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