दिन भर ताकता हूँ बाहर
देखता हूँ चहल-पहल
बस का आना, बस का जाना
वॉक को निकलते पड़ोसी
युवा खेलते टेनिस
माताएँ टहलातीं बच्चे
शाम होते ही
गिरा देता हूँ पर्दे
कोई मुझे न देख ले
अंदर न देख ले
बाहर के उजाले में
अंदर का अंधेरा
मुझे महफ़ूज़ रखता है
बाहर के अंधेरे में
अंदर का उजाला
डरता है
राहुल उपाध्याय । 22 फ़रवरी 2022 । सिएटल
http://mere--words.blogspot.com/2022/02/blog-post_82.html?m=1
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