ये रोग जैसे दुश्मन बन गया बहारों का
करेगा रूख अब छोड़ धरती, सितारों का
आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले
कल तेरी बज़्म से ये रोग चला जाएगा
याद रह जाएगी बस रोग चला जाएगा
तेरी महफ़िल तेरे जलवे हों मुबारक तुझको
तेरी फ़ितरत पे है आज भी संदेह मुझे
तेरा मयखाना सलामत रहे ऐ मानवता
बस पी-पाके चलाता है ये खेद मुझे
टीका भी कोई नहीं के तू बच जाएगा
मैं न होता तो भूल जाता कि रोना क्या है
एक इंसान को इंसान का होना क्या है
तेरी ताक़त तेरी हिम्मत के तूने नापें कदम
अपने हाथों से हाथ का धोना क्या है
अब तुझे आई समझ तो ये चला जाएगा
तू मुझे चाहे तो आज समझ ले कुछ भी
मैं जो जाता हूँ तो क्या कल न कोई आएगा
तू मेरी माने न माने कोई ग़म ही नहीं
आज ना समझा तो क्या कल को समझ जाएगा
जो न बिल आज भरा कल वो भरा जाएगा
राहुल उपाध्याय । 20 फ़रवरी 2022 । सिएटल
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सुन्दर
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