Tuesday, February 1, 2022

फ़ोन न होता

फ़ोन न होता 

तो हम क़रीब न होते

फ़ोन न होता

तो हम दूर न होते


इन दो पंक्तियों के बीच है

एक साल की दूरी

एक साल में एक नहीं 

फ़ोन कई बार किया

सौ नहीं हज़ार बार किया

करते-करते क्या करने लगे

प्यार की कू-ची-कू भरने लगे


कहाँ तो किसी से पाँच मिनट बात न हो 

और तुमसे?

जब तक रात की सुबह और सुबह की रात न हो

तब तक पूरी हमारी बात न हो

हर बात रही फिर भी सदा आधी


और फिर मिले तो ऐसे मिले

कि मिल के भी गले हमें कहाँ चैन मिला

आग की लपटों सा प्रेम बढ़ने लगा


वह प्यार ही क्या जिसका विरोध न हो


अब तुम हो वहाँ 

और मैं हूँ यहाँ 

दूर भी हैं और पास भी हैं

कर लेते बातें कभी ख़ास भी हैं 


एक दूसरे की हम बात न सुनते

तो हम कभी क़रीब न होते

एक दूसरे की हम बात न सुनते

तो हम कभी दूर न होते


राहुल उपाध्याय । 1 फ़रवरी 2022 । सिएटल 




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2 comments:

Pramila Kaushik said...

फ़ोन न होता, तो हम करीब न होते।
फ़ोन न होता, तो हम दूर न होते।
इन पँक्तियों के माध्यम से आपने बहुत ही गहन भावाभिव्यक्ति अत्यंत सरल शब्दों में कर दी। आपको हार्दिक बधाई 💐💐

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर