हर तरफ़ अब यही अफ़साने हैं
हमें तुम्हें कपड़े पहनाने हैं
कितनी सच्चाई है इन बातों में
छोटे बच्चे भी देख न पाए
वो कभी जीन्स तो कभी कुछ ले कर
बखेड़े छोटे-बड़े कर जाए
वोट पड़ जाए न फिर आने हैं
एक हल्का सा बखेड़ा इनका
कभी इसको तो कभी उसको लूटेगा
किस तरह प्यास बुझेगी इनकी
किस तरह इनका नशा टूटेगा
जिनके हाथों में मज़हबी दस्ताने हैं
उनका जिव्हा पे नहीं है क़ाबू
कर रहें वादे घूम गली-गली
कभी इतने की, कभी उतने की
लगा देंगे ये नौकरी
रास्ते वोट के पुराने हैं
राहुल उपाध्याय । 12 फ़रवरी 2022 । सिएटल
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