अब कोरोना जा रहा है
मन घबरा रहा है
रोज़ एक ही बुरी ख़बर सुनने की
आदत सी हो गई थी
अब न जाने क्या-क्या सुनना पड़ेगा
लोग मिलने-जुलने लगेंगे
झूठे गले मिलने लगेंगे
नये-नये बहाने बनाने लगेंगे
जहाँ न जाना चाहता हूँ
वहाँ भी जाना पड़ेगा
जहाँ जाना चाहता हूँ
वहाँ से न जाने क्या-क्या सुनना पड़ेगा
कोरोना
जैसा भी था
साथ तो था
वरना
आजकल
दो बरस
कौन रूकता है किसके पास?
कोरोना जा रहा है
मन घबरा रहा है …
राहुल उपाध्याय । 15 फ़रवरी 2022 । सिएटल
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वाह
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