अभी लता को गए
एक हफ़्ता भी नहीं हुआ है
और लोग बोर होने लगे हैं
उनके गीतों की पोस्ट्स से
उनसे सम्बंधित किसी बात से
जिस दिन गुज़री थी
लगा था
जैसे कोई पहाड़ टूट पड़ा है
कोई अपना चला गया है
न हँसने का मन था
न गाने का
बस उन्हीं की यादों में
खो जाने को दिल करता था
अच्छा लगा
देखकर भीड़
जो उनके साथ
चिताग्नि तक गई
अच्छा लगा
राजकीय शोक
जो दो दिन तक रहा
झण्डे झुके रहें
आकाशवाणी से शोक धुन
बहती रही
लेकिन अब?
कब तक रोओगे?
आगे बढ़ो
जो होना था हो गया
देखो
यह वेलेण्टाइन डे आ गया
और यह न पसन्द हो तो
पुलवामा को ही याद कर लो
कुछ भी करो
चुनाव पकड़ो
हिजाब पर लड़ो
बस लता को छोड़ो
मैं क्या करूँ?
मेरे पास तो एक लम्बी फ़ेहरिस्त है
उनके गानों की
मैं और मेरी तन्हाई
अक्सर बातें करते हैं
उनके गानों की
राहुल उपाध्याय । 11 फ़रवरी 2022 । सिएटल
1 comments:
सही कहा आपने ...हर दिन नयापन चाहिए यहाँ सबको...रोना हो या हँसना बस वजह नयी हो....
बहि सुन्दर सृजन
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