मैंने दोहा में ग़ज़ल लिखी
सब ने कहा
ये तो ग़ज़ल है
मैंने बाली से कंगन लिए
सब ने कहा
ये तो कंगन हैं
मैंने काठगोदाम से सेब लिए
सब ने कहा
ये तो ताज़ा हैं
हरिद्वार जब बंद था
सब ने कहा
चाबी से खोल लो
अमृतसर में था
सब ने कहा
फिर मन क्यूँ उदास था?
अरबी में ख़त था
पढ़ा ही नहीं गया
इतनी हल्दी लग चुकी थी
राहुल उपाध्याय । 1 जुलाई 2022 । सूरत