छोड़ के आना और अपनाना
देस पराया जब होता है
कितना सुंदर, कितना न्यारा
देस पराया तब होता है
चाँद-तारों के
सुनें थे अफ़साने
चाँद पाया तो
समझ में ये आया
ख़ुशी बिकती नहीं है
ख़ुशी न ले पाया
मिलें मंज़र इतने
कभी न कुछ भाया
दिल में ऐसी इच्छा जागी
दिल हुआ रूखा सा
प्यार था इतना पैसों से कि
सोच के भी दिल रोता है
भूला था जो आँगन
याद वो भी आया
हुआ था दूर जिससे
याद वो भी आया
पहर वो भी आया
फँसा ख़ुद को पाया
चाह कर जाना भी
घर न जा पाया
दिल से देस की याद न जाए
दिल हो गया दीवाना
मेरा देस से रिश्ता क्या है
साफ़ भला ये कब होता है
राहुल उपाध्याय । 15 जून 2022 । सिएटल
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