घर पास आते-आते
सब दूरी बढ़ाने लगते हैं
जब हम सफ़र करते हैं
न तुम ख़ास
न मैं ख़ास
तुम्हारे जैसे
और मेरे जैसे
कौड़ी के अठारह हैं
सब
एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं
सब
पढ़-लिख कर के
मेहनत आदि कर के
विदेश जाते हैं
घर आते हैं
किसी न किसी
जद्दोजहद से गुज़रते हैं
अब तुम्हारे क़रीब आए
तो तुम गले पड़ जाओगे
जितने खुलेपन से दूर वालों से
बात की जा सकती है
पास वालों से उतनी ही गोपनीयता
बरती जाती है
घर पास आते-आते
सब दूरी बढ़ाने लगते हैं …
राहुल उपाध्याय । 29 जून 2022 । दोहा (क़तर)
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