सागर की लहरें
उतने दिल
नहीं तोड़ती होंगी
जितने मैं तोड़ देता हूँ
चैट हटा कर
लहरें
जब लिखा मिटाती है
तो कुछ तो तसल्ली होती है
कि नादान हैं
पढ़ीं-लिखीं नहीं हैं
नहीं जानतीं कि
वे क्या कर रहीं हैं
और यहाँ उलटा
नीली डंडियाँ
झूठा कह देतीं हैं
कि मैंने सब पढ़ लिया
इन्हें और उन्हें
क्या मालूम
कि मैंने नौ से पाँच
खुद को गिरवी पर रख दिया है
बाक़ी समय
पकाता हूँ, खिलाता हूँ
धोता हूँ, सुखाता हूँ
इन सब के बीच
न तो समय है
न उर्जा
न इच्छा
कि
किसी के दिल से निकली
मार्मिक
सशक्त
भावपूर्ण
कविता
ग़ज़ल
रूबाई
सवैया
कुण्डलियाँ
मुक्तक
क्षणिकाएँ
देखूँ
शब्दों के मायने जानूँ
और उन पर सोचूँ
सच
कितना मुश्किल है जीवन
जब रोटी-कपड़ा-मकान मुहैया हो जाते हैं आसानी से
राहुल उपाध्याय । 10 जुलाई 2020 । सिएटल
1 comments:
अगर आपमें हिम्मत नहीं कि के8सी के लिखे को पढ़ सकें तो शायद औरों से भी ऐसी उम्मीद नहीं करते होंगे ।
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