देश आज घायल है
बेमौत मरती है मासूम जनता सनम
बंदों के हाथों गन देने वालो
कुछ तो करो तुम शरम
आ के ज़रा देखो
होते हैं किस-किस तरह से ज़ुल्म
है जुर्म लेकिन कहाँ कोई माने
होते हैं हर रोज़ सितम
अधिकार ऐसा मिला भी ये कैसा कि कम हो न गन का क़हर
जा-जा के मारे, कसाई, ये जानवर, फैलाए ज़हर ही ज़हर
बरसों से बदला है जो न क़ानून उसको बदलना ही होगा
फ़र्क़ चाहे कोई पड़े ना पड़े इतना तो करना ही होगा
हर आँख आँसू बहाती नहीं है हो जाए हज़ारों क़लम
कैसी ये दुनिया कैसे ये लोग जिनको न छूता है ग़म
पार्टी छोड़ कर हम वोट डालें हो जाए कोई सुधार
वरना यूँही हम रोते रहेंगे, रटते रहेंगे बेकार
रे ख़ास कुछ बदलता नहीं है
जब तक न हो प्रयास
तुम भी करो कुछ, मैं भी करूँ कुछ, निकल आए कोई निकास
राहुल उपाध्याय । 3 जून 2022 । सिएटल
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