बेरहम वक्त आँसू भी सोख लेता है
आँसू में भीगा शर्ट सूखा छोड़ देता है
कोई निशाँ भी नहीं के उसे चूम लूँ
हज़ारों मील दूर से उसे चूम लूँ
चाहत इस कदर थी उसमें
मुझको ये मालूम न था
हज़ार-लाखों फ़ोन किए
चुन-चुन के यूट्यूब से गीत चुनें
टूट-टूट के प्यार किया
मिलने को इतनी आतुर थी कि
लम्हा-लम्हा इंतज़ार किया
शरम-लाज सब छोड़ दी
गले लगे, साथ हँसे, साथ घूमें
सातों आसमान
तीनों लोक
दोनों हाथ छुएँ
इतने क़रीब हुए
कि
मिल पाना अब दुश्वार है
शहर जाना भी अपराध है
उसके हाथों प्रेस की हुई
शर्ट की क्रीज़ अब मिट चुकी है
यादें लेकिन धूमिल न होंगी
राहुल उपाध्याय । 31 मई 2022 । सिएटल
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