लड़कियाँ
अब खुले बाल रखती हैं
चोटियाँ नहीं बनातीं
छोटे रखती हैं
साड़ी पहन कर काम नहीं होते
असुविधा होती है
फ़ोटो खींचे जा सकते हैं
खींचवाए जा सकते हैं
शो-पीस बना जा सकता है
एक परिधान
हाशिये पर चला जाता है
एक साज-सज्जा
लुप्त हो जाती है
संस्कृति की नींव
खोखली होती जाती है
जिनकी संस्कृति नहीं
कितने भले हैं
हज़ारों साल से वही हैं
सुन्दर
अति सुन्दर
मनमोहक
पवित्र
न गर्भपात का क़ानून
न समलैंगिक अधिकारों की दुहाई
न गन-हिंसा की मगजमारी
न ईंधन की महंगाई
कुछ भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ता
राहुल उपाध्याय । 25 जून 2022 । सिएटल
0 comments:
Post a Comment