दब के नहीं जीऊँगा
मर के नहीं जीऊँगा
ज़िन्दा रहूँगा यूँही
लड़ता रहूँगा यूँही
एक ही एक से मैं
प्रेम न करने पाऊँ
सुन्दर सा हो
प्यारा कोई
रोक न खुद को पाऊँ
अब मैं नहीं रूकूँगा
मर के नहीं जीऊँगा
ज़िन्दा रहूँगा यूँही
मरता रहूँगा यूँही
अपने हाथ में हैं
दुनिया के नियम
जब जो चाहूँ
मैं वो बदलूँ
अपना ये ही धरम
अब ना मैं सुनूँगा
डर के नहीं जीऊँगा
ज़िन्दा रहूँगा यूँही
जीता रहूँगा यूँही
जब भी देखूँ मुझे
जीत न हासिल हो
ख़ुद को बोलूँ
रोना छोड़ो
इतना बोझ न लो
दस से यही कहूँगा
सबसे यही कहूँगा
ज़िन्दा रहूँगा यूँही
गाता रहूँगा यूँही
राहुल उपाध्याय । 11 जुलाई 2023 । बैंगलोर
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