देखो सपने
जब तक निशा रहे
जग के करो पूरे
जब तक अंधियारा हो
रहो न डर के जग से
सुन्दर-सुन्दर सपने
देखो आँख मींचे
एक नहीं, दो नहीं
दो नहीं, दस नहीं
देखो अनेकों सपने
सुंदर सपनों की हो
मंज़िल कदम के नीचे
फ़ुर्सत किसको होगी
देखे जो मुड़के पीछे
तुम चलो, हम चलें
हम चलें, तुम चलो
रूत ये सदा चले
मंजर सब्ज़ बाग के
बनते हैं छाँव-धूप से
तुम भी बने हो आज जो
बने हो सुख-दुख से
दिन रहे, रात रहे
शाम ढले, सुबह उगे
सबको लगा गले
राहुल उपाध्याय । 13 जुलाई 2023 । दोडबल्लापुर, कर्नाटक
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