चाँद के चक्कर
लगाए बहुत
पर चन्द्रयान न अपना उतर सका
उदयपुर-आगरा सब गया
बैंगलोर-बारामती छू लिए
दिल्ली जो इतनी दूर थी
नौ घंटे वहाँ भी गुज़ार दिए
मुम्बई का हर कोना छान लिया
रतलाम-शिवगढ़ सब नाप लिए
इस पर्वत पर, उस झरने पर
उसका न कहीं दीदार हुआ
वो ताज जो मोहब्बत की निशानी है
उसने भी न मेरा साथ दिया
मोहब्बत से बढ़कर
'गर मोहब्बत हो
तो हीर-रांझे नहीं मिल पाते हैं
लैला को पता हो पटकथा पूरी
वह खूब सयानी हो जाती है
न मार सकता है मजनूँ को कोई पत्थर से
वह ख़ुद पराई हो जाती है
राहुल उपाध्याय । 21 जुलाई 2023 । फ्रेंकफर्ट और सिएटल के बीच, तीस हज़ार फ़ीट की ऊँचाई से
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