Friday, July 21, 2023

चाँद के चक्कर लगाए बहुत

चाँद के चक्कर 

लगाए बहुत

पर चन्द्रयान न अपना उतर सका

उदयपुर-आगरा सब गया

बैंगलोर-बारामती छू लिए 

दिल्ली जो इतनी दूर थी

नौ घंटे वहाँ भी गुज़ार दिए

मुम्बई का हर कोना छान लिया 

रतलाम-शिवगढ़ सब नाप लिए

इस पर्वत पर, उस झरने पर

उसका न कहीं दीदार हुआ 

वो ताज जो मोहब्बत की निशानी है

उसने भी न मेरा साथ दिया 


मोहब्बत से बढ़कर 

'गर मोहब्बत हो

तो हीर-रांझे नहीं मिल पाते हैं 


लैला को पता हो पटकथा पूरी

वह खूब सयानी हो जाती है 

न मार सकता है मजनूँ को कोई पत्थर से

वह ख़ुद पराई हो जाती है 


राहुल उपाध्याय । 21 जुलाई 2023 । फ्रेंकफर्ट और सिएटल के बीच, तीस हज़ार फ़ीट की ऊँचाई से








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