डाक थी सुस्त
व्हाट्सएप है चुस्त
डाक थी महंगी
व्हाट्सएप है मुफ़्त
व्हाट्सएप का सिलसिला हुआ शुरु
डाकिये का आना जाना हो गया बंद
पड़ोसी भी भेजने लगे व्हाट्सएप
और मेल-मिलाप का हो गया अंत
डाक में कई बाधाएँ थीं
नाप तोल की सीमाएँ थीं
फिर भी साथ ले आती थी
छोटे लिफ़ाफ़ों में बहनों का गर्व
हर भैया दूज और राखी के पर्व
डाक में कई बाधाएँ थीं
नाप तोल की सीमाएँ थीं
फिर भी साथ ले आती थी
होंठों की लाली, हल्दी के निशां
जो जता देते थे प्रेम, कुछ लिखे बिना
डाक में कई बाधाएँ थीं
नाप तोल की सीमाएँ थीं
फिर भी साथ ले आती थी
माँ के आंसूओं से मिटते अक्षर
जो अभी तक अंकित हैं दिल के अंदर
डाक में कई बाधाएँ थीं
नाप तोल की सीमाएँ थीं
व्हाट्सएप में नहीं कोई रोक-टोक
बकबक करे या भेजे 'जोक'
पूरे करें आप अपने शौक
किस काम का ये बेलगाम विस्तार?
समाता नहीं जिसमें अपनों का प्यार
गिगाबाईट का स्टोरेज गया है भर
एक भी संदेश नहीं उसमें मगर
जो मुझको आश्वासित करे
न गुड मॉर्निंग हो, न सुप्रभात हो
मुझको बस सम्बोधित करे
आदमी या तो है आरामपरस्त
या फिर है कुछ इस कदर व्यस्त
कि कट-पेस्ट से चलाता काम है
ऑटो सिग्नेचर से करता प्रणाम है
सब हैं सुविधा के नशे में धुत्त
धीरे धीरे सब हो रहा है लुप्त
डाक थी सुस्त
व्हाट्सएप है चुस्त
डाक थी महंगी
व्हाट्सएप है मुफ़्त
राहुल उपाध्याय । 20 जून 2017 । सिएटल
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