Thursday, October 14, 2021

डाक और व्हाट्सेप

डाक थी सुस्त 

व्हाट्सएप है चुस्त

डाक थी महंगी

व्हाट्सएप है मुफ़्त


व्हाट्सएप का सिलसिला हुआ शुरु

डाकिये का आना जाना हो गया बंद

पड़ोसी भी भेजने लगे व्हाट्सएप

और मेल-मिलाप का हो गया अंत


डाक में कई बाधाएँ थीं

नाप तोल की सीमाएँ थीं

फिर भी साथ ले आती थी

छोटे लिफ़ाफ़ों में बहनों का गर्व

हर भैया दूज और राखी के पर्व


डाक में कई बाधाएँ थीं

नाप तोल की सीमाएँ थीं

फिर भी साथ ले आती थी

होंठों की लालीहल्दी के निशां

जो जता देते थे प्रेमकुछ लिखे बिना


डाक में कई बाधाएँ थीं

नाप तोल की सीमाएँ थीं

फिर भी साथ ले आती थी

माँ के आंसूओं से मिटते अक्षर

जो अभी तक अंकित हैं दिल के अंदर


डाक में कई बाधाएँ थीं

नाप तोल की सीमाएँ थीं

व्हाट्सएप में नहीं कोई रोक-टोक

बकबक करे या भेजे 'जोक'

पूरे करें आप अपने शौक


किस काम का ये बेलगाम विस्तार?

समाता नहीं जिसमें अपनों का प्यार

गिगाबाईट का स्टोरेज गया है भर

एक भी संदेश नहीं उसमें मगर

जो मुझको आश्वासित करे

 गुड मॉर्निंग हो सुप्रभात हो

मुझको बस सम्बोधित करे


आदमी या तो है आरामपरस्त

या फिर है कुछ इस कदर व्यस्त

कि कट-पेस्ट से चलाता काम है

ऑटो सिग्नेचर से करता प्रणाम है


सब हैं सुविधा के नशे में धुत्त

धीरे धीरे सब हो रहा है लुप्त


डाक थी सुस्त

व्हाट्सएप है चुस्त

डाक थी महंगी

व्हाट्सएप है मुफ़्त


राहुल उपाध्याय  20 जून 2017  सिएटल 

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