कल
मैं इतना दुखी रहूँगा
कह नहीं सकता
लेकिन
आज
अलसाते रास्तों से
मुझे बहुत कोफ़्त है
जो गुज़रते हैं
किसी भीड़ से
मोहल्ले से
जहाँ लोग हैं
सुखी हैं या दुखी
मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
हर ट्रेफ़िक लाईट पर
झुँझलाहट होती है
देखकर
हँसते-रोते
बच्चे-बूढ़े-जवान
मन करता है
सबको पैक कर दूँ
मूविंग बाक्सेस में
और
हाईवे पर ही दौड़ाऊँ अपनी कार
और देखता रहूँ
पहाड़, झरने, रंग बदलते पत्ते
नीला आसमान
कभी
ज़मीन पर न उतरूँ
(मम्मी के गुज़रने के 84 दिन बाद)
राहुल उपाध्याय । 29 अक्टूबर 2021 । सिएटल
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