Friday, October 8, 2021

ये कुलदीप, ये ‘कूल डूड’

ये कुलदीप ये 'कूल डूड'

कमाल का इनका 'एटीच्यूड'


गुलाब जामुन और चॉकलेट

आलू पराठा और ऑमलेट

ये हैं इनके 'पेट फ़ूड'


पढ़ते-लिखते दिन और रात

अव्वल आते हर जमात

काश! ये होते इतने 'गुड'


संगीत इनका धूम-धड़ाक

बात करते तू-तड़ाक

'बिहेवियर' इनका 'वैरी क्रूड'


सुबह से हो जाता शुरू

टीवी जो इनका है गुरू

मार्गदर्शक इनका हॉलीवुड 


दिल को लगे ठेस सी

देख के इनकी प्रेयसी

लोग कहते हम हैं 'प्रूड'

('प्रूड' = पुराने ख़्यालात के)


नाम के होते हैं 'पैरेंट्स'

जो 'पे' करते हैं इनके 'रेंट'

और बदले में चाहे 'ग्रेटिच्यूड'


कपड़े इनके कटे-फ़टे

दुनिया से रहते कटे-कटे

डाल के सर पे अपने 'हुड'


आने-जाने पे नहीं है रोक

खाने-पीने पे नहीं है रोक

फिर भी मांगे और 'लैटिच्यूड'

('लैटिच्यूड' = ढील)


राहुल उपाध्याय । अक्टूबर 2002 । सेन फ़्रांसिस्को 


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