हम हैं सब काम के
कोई ना बेकार है
तेरे ख़ुद के रास्ते
तुझको ढूँढेंगे नहीं
मंज़र सब्ज़ बाग़ के
घर पे मिलेंगे नहीं
बढ़ तू आगे रख कदम
मान ले कर ना वहम
अपनी बातों पे आप ही
करना अमल संसार में
दूजों को देकर आईना
ख़ुद न रह अंधकार में
गर रहे तू मौज में
सब रहेंगे शौक़ से
घटते-घटते ज़िन्दगी
होगी तो तमाम भी
ढलते-ढलते शाम भी
देती है एक राह भी
तू भी कोई छाप छोड़
सब पे अपने हाथ जोड़
आना-जाना रीत है
रीत में ही प्रीत है
आते-जाते मौसमों
से जीवन मनमीत है
ठहरा पानी त्याग दे
बहता दरिया थाम ले
राहुल उपाध्याय । 11 सितम्बर 2021 । सिएटल
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सुन्दर सृजन
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