तू नदिया की धारा
मैं बादल एक आवारा
तू मुझको क्यूँ चाहे
मैं तुझको क्यूँ चाहूँ
तेरा चुम्बन धूप ले प्यारा
तुझे बाँहों में कसे किनारा
मैं तुझको क्यूँ चाहूँ
तू मुझको क्यूँ चाहे
तेरा पिया है सागर खारा
तुझे देना उसे है सारा
तू मुझको क्यूँ चाहे
मैं तुझको क्यूँ चाहूँ
मैं हवा के तन से लिपटूँ
हर घड़ी मैं रूख बदल लूँ
तू मुझको क्यूँ चाहे
मैं तुझको क्यूँ चाहूँ
सागर तड़पे मैं निकलूँ
मैं तड़पूँ तुझे वो निगले
ये जनम-जनम के हैं फेरे
जैसे साँझ और सवेरे
हर रोज़ आ के जग में
मिल के भी नहीं हैं मिलते
ये सदियों से होता आया
दिल चैन से कहाँ रह पाया
जीवन जोत यूँ पनपे
पनपे जग जीवन सारा
तू नदिया की धारा
मैं बादल एक आवारा …
राहुल उपाध्याय । 17 अक्टूबर 2021 । सिएटल
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सुंदर सृजन
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