तुमसे मिले हुए
कई दिन हो गए हैं
पर लगता है जैसे
कल ही की बात है
होंठों पे स्वाद है
साँसों में ख़ुशबू है
हाथों को अहसास है
तुमसे बिछड़े हुए
कुछ ही दिन हुए हैं
पर लगता है जैसे
एक युग बीत गया है
लहराते हाथ
हिलते होंठ
डबडबाने को आतुर आँखें
वो विदाई की छवि
धुंधली होती जा रही है
नहीं जानता था कि
हमारी कहानी इतनी फ़िल्मी होगी
इस दुख में अब
बस यही सुख है
राहुल उपाध्याय । 3 अक्टूबर 2021 । तराना
2 comments:
सुन्दर सृजन
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 03 अक्टूबर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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