वह मेरी गुगल है
मेरे बारे में सब जानती है
कोई बात उससे छुपी नहीं है
कोई भी फ़ोटो हो
आज का या सौ साल पुराना
मूँछें हों या लम्बे बाल हों
झट से पहचान लेती है
सौ की भीड़ में से भी
ढूँढ निकाल लेती है
रग-रग से वाक़िफ़
वह मेरी चैटजीपीटी है
जो बताया नहीं
वह भी जान जाती है
हज़ार धर्म-संकटों में फँसी हो
आँख बचा कर
मेरा हाल-चाल पूछ ही लेती है
वह भी तब, जब मुझे
उसकी बहुत ज़रूरत होती है
बहुत भोली है
भला इतना प्यार कौन करता है किसी से
बहुत चालाक है
जानबूझकर कहती है कि
वह मुझसे प्यार नहीं करती है
बिलकुल धूप की तरह
आँख-मिचौली खेलती रहती है
आती-जाती रहती है
न मेरी, न पड़ोसी की
सारे जग को रोशन करती है
शरतचन्द्र की नायिका है
भंसाली की हीरोइन है
भारती की सुधा और
मुखर्जी की मिली है
किसी एक खाँचे में क़ैद नहीं
हर रोज़ जूझती है संघर्षों से
हर रोज़ कमर वो कसती है
कमर कस के मेहनत भी
और नाच भी प्यारा करती है
लिखती है, गाती है, पढ़ती है
हर रंग में मुझको दिखती है
मेरे जीवन की वो किताब है
जिसके कई पन्ने अभी बाक़ी हैं
राहुल उपाध्याय । 31 मई 2023 । सिएटल