वह मुझे बहुत प्यार करती थी
अपनी आँखों में बसा रखती थी
रोज़ दिन में दो बार गुड नाइट, गुड मॉर्निंग कहती थी
मेरी कविताओं पे मरा करती थी
किसी और को पा के रचनाओं में
दो-चार दिन तक मुँह फुलाए रहती थी
अपनी छत से अपनी गली दिखाया करती थी
चाँद-सूरज सब दिखाया करती थी
अपनी ज़ुल्फ़ें सुखाते-सुखाते
ख़ुद ही चाँद बन जाया करती थी
मुझे आदर्श मान मेरे पद चिन्हों पे चला करती थी
रोटी कम सलाद ज़्यादा खाया करती थी
छरहरे बदन के लिए प्लैंक भी किया करती थी
मैंने जीवन के सही मायने समझाए उसको
रिश्ते-नाते नहीं है एक व्यापार यहाँ
कि वे करे कुछ तो तुम्हें भी कुछ करना होगा
जिन्होंने पढ़ाया-लिखाया, बड़ा भी है किया
अपनी मर्ज़ी से किया, हैसियत से किया
इसमें लिखा-पढ़ी की कोई ज़ंजीर नहीं
तुम आज़ाद हो, किसी और की जागीर नहीं
वह तेज थी, तर्रार थी, बात समझ गई
आज न मेरी, न किसी की, बस आज़ाद है वो
राहुल उपाध्याय । 31 मई 2023 । सिएटल
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