वक़्त करता जो वफ़ा वोट हमारे होते
हमने जनता के ये नोट न मारे होते
अपनी तक़दीर में पहले ही से कुछ तो ग़म है
और कुछ आज की हवाओं में वफ़ा भी कम है
वरना जीती हुई बाज़ी तो न हारे होते
हम भी रोते हैं ये साथी को जता भी न सके
साथ है कोई न किसी को बता भी न सके
काश हम ग़ैरत-ए-महफ़िल के न मारे होते
दम घुटा जाता है सीने में फिर भी ज़िंदा हैं
पंजाब क्या हम तो दिल्ली से ही शर्मिन्दा हैं
मर ही जाते न जो भक्तों के सहारे होते
(इन्दीवर से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 22 मई 2023 । सिएटल
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