वह दारू पी कर कुछ मुझसे बोली
कुछ समझा, कुछ समझ न पाया
फिर भी बात बहुत ये भाई
कि सबको छोड़ वो मुझसे बोली
होश-हवास में कुछ कहती नहीं है
इधर-उधर की बात करती है
प्रेम नहीं है ये प्रेम नहीं है
वैसा वाला तो बिलकुल नहीं है
कहती नहीं है पर सच यही है
कभी प्रेम किया हो तो प्रेम करे भी
बस कहती है
कुछ मीठा सा है, कुछ अच्छा सा है
चुलबुला सा, पर सच्चा सा
क्या कहूँ इसे, इसका कोई नाम नहीं है
पल-पल मेरे साथ रहता है
मुझको अपने साथ रखता है
बताने को जग को मन करता है
बताने से लेकिन डर लगता है
ये जेल की सलाख़ें कहीं टूट न जाए
खुली हवा कहीं मिल न जाए
बिन जेलर मेरी पहचान नहीं है
उन्मुक्त गगन मेरा स्थान नहीं है
राहुल उपाध्याय । 23 मई 2023 । सिएटल
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