न किसी की आँख का नूर हूँ
न किसी के दिल का क़रार हूँ
जो किसी के काम न आ सके
मैं वो रूपया दो हज़ार हूँ
मेरा रंग-रूप बिगड़ गया
मेरा गाँधी मुझसे बिछड़ गया
जो तिजोरी में रह सड़ गया
मैं वो रूपया दो हज़ार हूँ
मुझे बटुए में ले के जाए क्यूँ
मुझे उधार ले के जाए क्यूँ
जिसे उठाईगिरे भी उठाए ना
मैं वो रूपया दो हज़ार हूँ
कभी 'छुट्टा नहीं' सुन के ख़ुश था
आज छुट्टी हुई तो हताश हूँ
जिसकी औक़ात सामने आ गई
मैं वो रूपया दो हज़ार हूँ
मेरा मान-मूल्य जो भी था
उसका दारोमदार कोई और था
इक हवा चली और जो ध्वस्त था
मैं वो रूपया दो हज़ार हूँ
(मुज़्तर ख़ैराबादी से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 19 मई 2023 । सिएटल
1 comments:
हा हा हा ! मज़ा आ गया !
बहादुर शाह ज़फर का फ़ोन आ गया होगा !
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