मैं इतना आत्मनिर्भर हूँ कि
सारे काम अपने आप करता हूँ
बनाता हूँ, खाता हूँ
धोता हूँ, पहनता हूँ
घर साफ़-सुथरा रखता हूँ
स्वयं बाज़ार जाता हूँ
स्वयं गाड़ी चलाता हूँ
यहाँ तक कि
अपनी चिता की लकड़ी और घी का भी
इंतज़ाम कर लिया है
किसी को इस काम पर भी लगा दिया है कि
वह रोज़ सुबह मुझे फ़ोन कर के देख ले कि
मैं ज़िन्दा हूँ या
मुझे अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जाए
इसीलिए घर का दरवाज़ा हमेशा खुला रहता है
न जाने किस दिन कूच कर जाऊँ
मैंने एक ट्रस्ट भी स्थापित कर लिया है
जो कि मेरी करोड़ों की जमा पूँजी से
नोबेल पुरस्कार की तर्ज़ पर
साल-दर-साल
प्रकाश पुरस्कार देता रहे
मैं नहीं
मेरी माँ का नाम रोशन रहे
सबको रोशन करता रहे
राहुल उपाध्याय । 18 मई 2023 । सिएटल
1 comments:
मां को नमन 🙏
बहुत खूब।
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