कभी कभी दुआओं का जवाब आता है
और कुछ इस तरह कि बेहिसाब आता है
यूँ तो प्यासा ही जाता है अक्सर सागर के पास
मगर कभी कभी सागर बन कर सैलाब आता है
ढूंढते रहते हैं जो फ़ुरसत के रात दिन
हो जाते हैं पस्त जब पर्चा रंग-ए-गुलाब आता है
दो दिलों के बीच पर्दा बड़ी आफ़त है
तौबा तौबा जब माशूक बेनक़ाब आता है
पराए भी अपनों की तरह पेश आते हैं 'राहुल'
वक़्त कभी कभी ऐसा भी खराब आता है
सेन फ़्रंसिस्को,
2003
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सैलाब = floods
पर्चा रंग-ए-गुलाब= pink slip, notice of dismissal from one's job
Monday, July 7, 2008
कभी कभी दुआओं का जवाब आता है
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:02 PM
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Labels: CrowdPleaser, TG
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