ज़िंदगी हो पर प्यार न हो
जैसे जीत हो पर हार न हो
जैसे धन हो पर अपार न हो
जैसे फूल हो पर बहार न हो
जैसे पालकी हो पर कहार न हो
जैसे नौकरी हो पर पगार न हो
जैसे गैस हो पर कार न हो
ज़िंदगी हो और ज़ज़बात न हो
जैसे दीप हो और बात न हो
जैसे शब्द हो और बात न हो
जैसे बाजा हो और बारात न हो
जैसे अंधेरा हो और रात न हो
जैसे कलम हो और दवात न हो
जैसे बच्चे हो और उत्पात न हो
ज़िंदगी हो और सुख न हो
जैसे एक्ज़ाम हो और बुक न हो
जैसे टिफिन हो और भूख न हो
जैसे किचन हो और कुक न हो
ज़िंदगी हो और कोई संग न हो
जैसे रुप हो पर रंग न हो
जैसे रूत हो पर पतंग न हो
जैसे होली हो पर हुड़दंग न हो
जैसे लस्सी हो पर भंग न हो
जैसे रात हो पर पलंग न हो
जैसे गीत हो पर तरंग न हो
सिएटल,
12 जुलाई 2008
Saturday, July 12, 2008
ज़िंदगी हो multiple choice
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:37 PM
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Labels: CrowdPleaser, misc
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1 comments:
बढिया रचना है।
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