मैं गिन रहा हूँ
जीवन की अंतिम घड़ियाँ
लेकिन रुको
अभी से हाय-तौबा न मचाओ
न लोगो की भीड़ इकट्ठा करों
न ही मेरे परिवार के लिए चंदा इकट्ठा करों
मुझे गिनती का शौक है
और मैं लाखों-करोड़ों तक गिन सकता हूँ
तो अभी थोड़ा रुकों
अभी वक़्त है मेरे उठ जाने में
अब आ ही गए हो
तो सुनते जाओ
कितने दु:ख है इस ज़माने में
पिछले हफ़्ते
राजस्थान में
एक सोलह साल की बच्ची
10 वीं क्लास में
तीसरी बार फ़ेल हो कर
पंखे से लटक कर मर गई
यहाँ अगर ये होता
तो बहुत हंगामा होता
सारे स्कूल में काउंसलर्स
बच्चों को ढांढस बंधाते
और माँ-बाप बच्चों के सर हाथ फेरते
वहाँ
किसी को फ़र्क नहीं पड़ता है
जो फ़ेल हो जाता है
वो मर जाता है
और जो फ़र्स्ट क्लास पाता है
उसका परिवार
मिठाई खाता है
खिलाता है
और वतनफ़रोशी की तमन्ना लिए
यहाँ आ जाता है
सुना था कि पहले
औरतें मरती थी
लुटेरों के डर से
आक्रमण के डर से
अपनी इज़्ज़त आबरू के डर से
लेकिन ये क्यो मरी?
उन लुटेरों के नाम होते थे
आक्रमणकारियों की पहचान होती थी
आज के लुटेरे बेनाम है
लेकिन
हर पल विराजमान है
हमारे दिल और दिमाग में
डिग्री
नौकरी
पैसा
ये ही हैं सब कुछ
ये ही हैं हमारे ईश्वर
ये ही हैं लुटेरे
देश तरक्की कर रहा है
क्यूंकि इसका उत्पादन प्रतिवर्ष दस प्रतिशत बढ़ रहा है
और भारत माँ के पूत घर वापस आ रहे हैं
और दूसरी तरफ़
दिन में पांच-पांच घंटे बिजली गायब रहती है
धर्म के नाम पर दंगे होते हैं
तीर्थयात्रा के नाम पर हड़ताल होती है
करोड़ों मे सांसद बिकते हैं
और इस पार?
मैं देख रहा हूँ
एक के बाद एक
आलिशान मंदिर बनते हुए
मैं देख रहा हूँ
एक के बाद एक
आलिशान होटलों में
स्वामी उपदेश देते हुए
मैं देख रहा हूँ
एक के बाद एक
एन-जी-ओ झोली फ़ैलाए हुए
एन-जी-ओ को सबसे बड़ा दु:ख
इस बात का है
कि देश में लोग
सिर्फ़ एक डॉलर में
एक दिन का गुज़ारा कैसे कर लेते हैं?
उनकी इच्छा है कि
कम से कम
दस डॉलर तो
खर्च होने ही चाहिए
वरना कोक-पेप्सी-चिप्स-चुईंग-गम आदि
कौन खरीदेंगा?
मैं गिन रहा हूँ
जीवन की अंतिम घड़ियाँ
लेकिन रुको
अभी से हाय-तौबा न मचाओ
सिएटल,
15 जुलाई 2008
==========================
10 वीं क्लास = 10th grade
फ़ेल = fail
काउंसलर्स = counselors
फ़र्स्ट = first
वतनफ़रोशी = वतन बेचना
एन-जी-ओ = NGO
Tuesday, July 15, 2008
मौत
Posted by Rahul Upadhyaya at 2:57 AM
आपका क्या कहना है??
2 पाठकों ने टिप्पणी देने के लिए यहां क्लिक किया है। आप भी टिप्पणी दें।
Labels: intense
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
राहुल जी
बहुत बढ़िया कविता लिखी है आपने। थोड़ी लम्बी ज़रूर हुई है पर आनन्द आगया । खुदा करे आपकी गिनती खूब लम्बी हो। सस्नेह
Rahul ji aapki yeh kavita aaj ke samaj ka ek darpan hai jo anterman ko ander tak jhakjhood deta hai aur yeh sochne ko majboor karta hai ki ham agar aaj nahi jage kal
hamare bachhe kis duvidha se gugrege atah hame aaj hi aapne ankhe khol dene wali is kavita per manthan karna chaiye.
Vijender arya
Post a Comment