चना, चना, चना, चना
जिधर देखो उधर चना
करने लगा विवेचना
तो पाया कि चना है सर्वव्यापी
और मुश्किल है इससे बचना
मान लीजिए
आप गाना सुन रहे हैं
तो गाना गा रही हैं सुलोचना
आप पूजा कर रहे हैं
तो संतोषी माँ को चढ़ा रहे हैं गुड़-चना
आप शाकाहारी हैं
तो सेहत के लिए खा रहे हैं आलू-चना
आप पैसा कमा रहे हैं
तो सोच रहे होंगे कि कैसे उसे कम खर्चना?
मानसून हुआ मेहरबान
तो मग्गों से एक एक कर के पानी उलीचना
किसी से नाराज़गी हो
तो गुस्से में दांत भींचना
और लड़ाई झगड़ा हो
तो हाथापाई में मुंह नोचना
आप कवि है तो आप का काम होगा
रोज लिखना नई नई रचना
दु:ख-दर्द-आंसू से उसे सींचना
माईक मिलते ही माईक दबोचना
माईक पर घंटों तक उसे बांचना
किताब में छपाकर उसे बेचना
समीक्षकों के आगे पीछे नाचना
प्रकाशकों से अपना पारिश्रमिक खींचना
दू्सरे कवियों की हमेशा करना आलोचना
इस रचना में शामिल है
दुनिया का एक एक चना
लेकिन ये भी हो सकता है कि
मैंने बस शुरु किया हो
सतह को खरोंचना
अगर कुछ छूट गए हो
तो जल्दी मुझे दे सूचना
(एक को तो छोड़ दिया है जान-बूझ कर
देखें कौन बताता है उसे सबसे पहले बूझ कर)
सिएटल,
14 जुलाई 2008
Monday, July 14, 2008
चना, चना, चना, चना
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:28 AM
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Labels: fun, world of poetry
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2 comments:
वाह क्या खूब लिखा है। मान गये बहुत मुश्किल है आप की रचना से बचना।
बहुत बढिया है रचना।
बहुत खूब है आपका सोचना।
बहुत बढिया!!
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