Tuesday, July 8, 2008

मेरा सच और मेरी सोच


थोड़ी हंसी, थोड़ा क्रोश
थोड़े गुण, थोड़े दोष

थोड़ा शोक, थोड़ी मौज
थोड़ी मदद, थोड़ा बोझ

थोड़ी एंठन, थोड़ी लोच
थोड़ा मलहम, थोड़ी खरोच

ये सब मुझे देते हैं लोग
ये सब मुझे मिलते हैं रोज

इन सब को
मिलाजुला कर
मैं लिख लेता हूँ रोज

और कोई नहीं है मेरा कोच
बस मेरा सच और मेरी सोच

सिएटल,
8 जुलाई 2008
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कोच = coach

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intense
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1 comments:

Anonymous said...

"थोड़ी हंसी, थोड़ा क्रोश
थोड़े गुण, थोड़े दोष
थोड़ा शोक, थोड़ी मौज
थोड़ी मदद, थोड़ा बोझ
थोड़ी एंठन, थोड़ी लोच
थोड़ा मलहम, थोड़ी खरोच"

इन सबसे ही आपकी कविताएँ बनती हैं - और हमें पढनी अच्छी लगती हैं। लिखते रहिये, राहुलजी। भगवान की blessings हमेशा आपके साथ हैं।