Monday, July 21, 2008

ऐसे कैसे कोई अपना धरम भूल जाए

ऐसे कैसे कोई अपना धरम भूल जाए
कि जहाँ मिल गया सहारा वहीं रूक जाए

कश्ती हो, समंदर में रहो, लहरों में बहो
ये कैसी जुस्तजू कि किनारा मिल जाए

न पा सकता है फल, न हाथ आते हैं फूल
जो डरता रहा कि कहीं काँटें न चुभ जाए

मोह-माया के बंधन अच्छे है या बुरे
सोचिए तब जब कोई अपना रूठ जाए

जो न सुनते हैं तुम्हे, न समझते हैं तुम्हे
अच्छा ही है कि उनका साथ छूट जाए

जब तक है 'राहुल', तब तक रहेगा ये
कैसे किसी के कहने से दिल टूट जाए

सिएटल,
21 जुलाई 2008
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धरम = duty
जुस्तजू = desire

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