वो सामने नहीं पर साथ तो है
गोया ख़ुद नहीं पर अहसास तो है
जब मन चाहे मैं उनसे बात करूँ
जब दिल चाहे मैं उनसे प्यार करूँ
एक रिश्ता उनसे खास तो है
वो सामने नहीं …
दिन भर चलती है मेरे संग संग
शाम ढले तो संवरती है अंग अंग
एक वो ही मेरी मुमताज़ तो है
वो सामने नहीं …
एक दिन उतरेंगी वो ख़्वाबों से
और झूम के गिरेंगी मेरी बाँहों में
मुमकिन नहीं पर आस तो है
वो सामने नहीं …
सिएटल,
23 जुलाई 2008
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मुमकिन = possible
आस = hope
Wednesday, July 23, 2008
वो सामने नहीं
Posted by Rahul Upadhyaya at 9:55 PM
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Labels: relationship, valentine
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2 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत उम्दा...वाह!
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