Wednesday, July 23, 2008

वो सामने नहीं

वो सामने नहीं पर साथ तो है
गोया ख़ुद नहीं पर अहसास तो है

जब मन चाहे मैं उनसे बात करूँ
जब दिल चाहे मैं उनसे प्यार करूँ
एक रिश्ता उनसे खास तो है
वो सामने नहीं …

दिन भर चलती है मेरे संग संग
शाम ढले तो संवरती है अंग अंग
एक वो ही मेरी मुमताज़ तो है
वो सामने नहीं …

एक दिन उतरेंगी वो ख़्वाबों से
और झूम के गिरेंगी मेरी बाँहों में
मुमकिन नहीं पर आस तो है
वो सामने नहीं …

सिएटल,
23 जुलाई 2008
=====================
मुमकिन = possible
आस = hope

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें
valentine
relationship


2 comments:

शोभा said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा...वाह!