हम कवि हैं
एक से पेट नहीं भरता
तो दस गुट बना लेते हैं
कोई हमें पुरुस्कार न दे
तो हम अपने पुरुस्कार बना लेते हैं
जब देखो तब
नेता की
सरकार की
आलोचना करते हैं
लेकिन उन्हीं से अपनी संस्था के लिए
समर्थन की
सहारे की
आस रखते हैं
और अगर कोई नेता
अपने हाथ से पुरुस्कार प्रदान करे
तो फिर क्या
समझ लीजिए
सारी मेहनत सफ़ल हो गई
हर संस्था का दावा
कि वे निष्पक्ष
और निस्वार्थ रूप से कर रही हैं
साहित्य की सेवा
मजाल कि आप
कर दे इनकी आलोचना
तुरंत साध लेंगे तीर-बाण
करने आपकी भर्त्सना
अरे भाई
कौन इन्हे समझाए
कि कोई नहीं है दूध का धुला
न मैं न आप
चाहे सेठ हो साहूकार हो
चाहे वो भ्रष्ट सरकार हो
हर मेजबान के सामने
हमारे सर झुकेंगे
पारिश्रमिक लेते नहीं
हमारे हाथ थकेंगे
सिएटल,
20 जुलाई 2008
Sunday, July 20, 2008
हम कवि हैं
Posted by Rahul Upadhyaya at 7:43 PM
आपका क्या कहना है??
3 पाठकों ने टिप्पणी देने के लिए यहां क्लिक किया है। आप भी टिप्पणी दें।
Labels: world of poetry
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
बहुत खूब!! जमाये रहिये कवित्त!! कवि महोदय! :)
vaah!!बहुत बढिया रचना है।लिखते र्हें।
वाह, करारा व्यंग्य।
Post a Comment