आए दिन कोई न कोई मुझसे पूछ ही लेता है
कि मेरा दिल अब भी तुम्हे चाहता क्यूँ है?
मैं जवाब में पूछता हूँ
कि सावन के महीने में मोर नाचता क्यूँ है?
कि चकोर चाँद को ताकता क्यूँ है?
कि चाँद का धरती से वास्ता क्यूँ है?
कि चरवाहा भेड़-बकरी हाँकता क्यूँ है?
वो कहता है कि
आप भी क़माल करते हैं
घुमा फिरा कर बात करते हैं
आज के आधुनिक युग में
चाँद-चकोर-मोर-चरवाहों की बात करते हैं
कोई नई उपमाएँ दीजिए
कुछ नए मुहावरे जोड़िए
तो मैं पूछता हूँ
कि बाप जवान बेटी को ब्याहता क्यूँ है?
कि बाप बेटों में जायदाद बाँटता क्यूँ है?
कि सुबह सुबह ज़माना अख़बार बाँचता क्यूँ है?
कि जब होती है रात तो बूढ़ा खांसता क्यूँ है?
कि जब बंदा हो इटालियन तो खाता पास्ता क्यूँ है?
कि जब बॉस हो नाराज़ तो आदमी काँपता क्यूँ है?
और अगर अब भी समझ में न आए
तो मैं हाथ जोड़ता हूँ कि बाबा माफ़ करो
खाली-पीली मेरा दिमाग चाटता क्यूँ है?
नाक में दम कर रखा है इन्होनें
हमारी मरजी हम जो चाहे करे
आप से मतलब?
हम है
हमारी बोतल है
हम पिए ना पिए
आप अपना रास्ता नापिए
सिएटल,
8 जुलाई 2008
Tuesday, July 8, 2008
मैं तुम्हे क्यों चाहता हूँ
Posted by Rahul Upadhyaya at 2:00 PM
आपका क्या कहना है??
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Labels: valentine
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3 comments:
वाह!! क्या बात है.
उधेड़-बुन में हूँ. मत पूछियेगा क्यों !!
बहुत अच्छा लिखा है. बधाई.
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