ज़ंज़ीरे जो हैं मगर दिखती नहीं
'गर तोड़ दूँ तो क्या वो मिल पाएगी मुझको?
दीवारें जो हैं मगर दिखती नहीं
'गर गिरा दूँ तो क्या वो देख पाएगी मुझको?
ये क्या हुआ और क्यों हुआ?
जो होना था वही क्यों हुआ?
ये सवाल जो कभी खत्म होते नहीं
'गर पूछ लूँ तो क्या वो कह पाएगी मुझको?
उसे प्रिय लिखूँ कि प्रियतम लिखूँ?
उसे जाँ लिखूँ कि दिलबर लिखूँ?
सोच सोच के जो ख़त लिखें नहीं
'गर लिख दूँ तो क्या वो पढ़ पाएगी मुझको?
ये दिल अब कहीं लगता ही नहीं
ये दिल मेरा अब मेरा ही नहीं
ऐसी ज़िंदगी जो मैं जी सकता नहीं
'गर छोड़ दूँ तो क्या वो भूल पाएगी मुझको?
सिएटल,
24 जुलाई 2008
Friday, July 25, 2008
क्या वो मिल पाएगी मुझको?
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:14 AM
आपका क्या कहना है??
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Labels: relationship, valentine
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5 comments:
......ऐसी ज़िंदगी जो मैं जी सकता नहीं
'गर छोड़ दूँ तो क्या वो भूल पाएगी मुझको?...
....Wah!!! Rahul ji, as an opportunity, I saw your great Blog and I have no words to comments that you have written with just a good sense of literature and you used your words where they should be used.
Really i like it and desirous to get your all new creations.
...Ravi
http://mere-khwabon-me.blogspot.com/
http://ravi-yadein.blogspot.com/
वाह बहुत सुन्दर।
राहुलजी, परदेस का एक गाना इस पर बिल्कुल फिट है -सुनाऊँ ?
भला कौन है वो हमें भी बताओ ,
ये तस्वीर उसकी हमें भी दिखाओ ,
ये किस्से सभीको सुनाते नहीं हैं,
मगर दोस्तों से छुपाते नहीं हैं ,
तेरे दर्देदिल की दवा हम करेंगे ,
न कुछ कर सके तो दुआ हम करेंगे, न कुछ कर सके तो दुआ हम करेंगे,
तड़प कर आएगी वो , तुझे मिल जायेगी वो ,
तेरी महबूबा ...
Rahul ji, kya baat hai. bhut badhiya. ha vha jarur milegi. aamin.
Simply Awesome !!
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