Tuesday, May 31, 2022

फ़ोन

उसका फ़ोन आता है तो

बर्तन लोड करता हूँ 

कपड़े फ़ोल्ड करता हूँ 

घर का हर काम 

ख़ुशी-ख़ुशी करता हूँ 


अब

सब अस्त-व्यस्त है

पानी पीने को 

एक भी ग्लास नहीं है

ओक से पानी पी रहा हूँ 

उल्टा-सीधा पहन रहा हूँ 

पजामे पर 

ऑक्सफ़ोर्ड शर्ट पहन रहा हूँ 


सोचता हूँ 

मोह-माया छोड़ दूँ 

आत्मनिर्भर हो जाऊँ 


फिर सोचता हूँ 

जी के भी क्या करूँगा 

मुकेश कब सुनूँगा 

गीत कब रचूँगा 

फिलॉसफी कब उड़ेलूँगा


राहुल उपाध्याय । 31 मई 2022 । सिएटल 

http://mere--words.blogspot.com/2022/05/blog-post_31.html?m=1




फ़ोन

उसका फ़ोन आता है तो

बर्तन लोड करता हूँ 

कपड़े फ़ोल्ड करता हूँ 

घर का हर काम 

ख़ुशी-ख़ुशी करता हूँ 


अब

सब अस्त-व्यस्त है

पानी पीने को 

एक भी ग्लास नहीं है

ओक से पानी पी रहा हूँ 

उल्टा-सीधा पहन रहा हूँ 

पजामे पर 

ऑक्सफ़ोर्ड शर्ट पहन रहा हूँ 


सोचता हूँ 

मोह-माया छोड़ दूँ 

आत्मनिर्भर हो जाऊँ 


फिर सोचता हूँ 

जी के भी क्या करूँगा 

मुकेश कब सुनूँगा 

गीत कब रचूँगा 

फिलॉसफी कब उड़ेलूँगा


राहुल उपाध्याय । 31 मई 2022 । सिएटल 



Monday, May 30, 2022

रात के 1:38 पर

रात के 1:38 पर

पढ़ती है कविता

पूछती है 

सब ठीक है 

तिथि भी ठीक है 

लेकिन साइकिल 

तो मैंने खूब चलाई

फिर कौन है ये?


कितनी भोली है 

चोर की दाढ़ी में 

तिनके वाली कहानी

उसे पता ही नहीं 


राहुल उपाध्याय । 30 मई 2022 । सिएटल 





तेरे बावजूद

तेरे बावजूद

मैं तेरी एजुकेशन बना


लक्ष्मण रेखा लाँघ के

जो तू

न जानती थी

न मानती थी

वो सब बताया 


एक पूरा समंदर 

है तेरे अंदर 

तूने ना दिखाया

न छलका 

न कभी हँस के

न कभी शर्म से

बाहर आया


तू है पत्थर

तू है पत्थर

तू है पत्थर

तू है पत्थर


तू है पत्थर

तू है पत्थर

तू है पत्थर

तू है पत्थर


तू है पत्थर

तू है पत्थर

मैं न राम

न मुझे आती माया


राहुल उपाध्याय । 30 मई 2022 । सिएटल 


उसने कभी स्कर्ट नहीं पहनी

उसने कभी

स्कर्ट नहीं पहनी

साइकिल नहीं चलाई 


एक दिन शादी होगी

वह माँ बनेगी 

टीचर बनेगी 

नर्स बनेगी 

लाइब्रेरियन बनेगी

नेता बनेगी


आलिंगन-चुम्बन से

अनभिज्ञ रहेगी


एक भी पुरूष को छू न सकेगी


राहुल उपाध्याय । 30 मई 2022 । सिएटल 



Saturday, May 28, 2022

इतवारी पहेली: 2022/05/29


इतवारी पहेली:


जितने दिन लगते हैं बस्ती में घर ### #

उससे ज़्यादा लगते हैं वहाँ तक ## ## #


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya 


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 5 जून को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 29 मई 2022 । सिएटल 
















Re: इतवारी पहेली 2022/05/22



रवि, 22 मई 2022 को पू 2:22 पर को Rahul Upadhyaya <kavishavi@gmail.com> ने लिखा:

इतवारी पहेली:


न बढ़ सकी बात आगे ###

वो है लकड़ी और ## ##


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya 


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 29 मई को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 22 मई 2022 । सिएटल 
















वह मुझे पूछती है, सोचती है

वह मुझे 

पूछती है 

सोचती है 

मानती है 

चाहती है 

डोरे जम के डालती है

सेल्फ़ी हज़ार भेजती है 

घण्टों बात करती है 

डीलिट लॉग करती है 

बस प्यार नहीं करती है 


तो कौनसा गुनाह करती है?


कोई पास नहीं 

वो पास है 

कोई ख़ास नहीं 

वो ख़ास है

मेरी रग-रग पहचानती है 

बस प्यार नहीं करती है 


तो कौनसा गुनाह करती है?


वो आज है

तो साँस है

मेरे अस्तित्व का

अहसास है

मैं प्यार उससे करता हूँ 

तो कौनसा गुनाह करता हूँ?


राहुल उपाध्याय । 28 मई 2022 । सिएटल 




Friday, May 27, 2022

ओ मेरे दिल-ए-नादां

ओ मेरे दिल-ए-नादां

जब चाहो चले आना

जिस दिन से गए हो तुम

खुल्ला है ये दरवाज़ा 


धन-धान की क़ीमत पे 

मिलती नहीं ख़ुशियाँ हैं

अपनों के बिना दुनिया 

उजड़ी हुई बगिया है 

जिस दिन ये समझ लो तुम 

बेदाग़ चले आना


बर्बाद हुए जो दिन

बर्बाद नहीं हैं वो

विद्रोह बिना जीवन

जीवन तो नहीं है वो

जब राह कोई चुन ली

ओके है पलट जाना


राहुल उपाध्याय । 27 मई 2022 । सिएटल 




अगर

अगर

वे किसी 

अल्पसंख्यक 

समुदाय से होते 

तो किसी कैम्प में

भर्ती कर दिए जाते

प्रोफ़ाइल किए जाते

ड्राइव करते वक्त पकड़े जाते

शॉपिंग करते वक्त निगाह रखी जाती


राहुल उपाध्याय । 27 मई 2022 । सिएटल 



Thursday, May 26, 2022

कल होगा क्या प्यारे

कल होगा क्या प्यारे

तू जो मुँह फुलाए बैठा


जो आया है उसको जाना

उसको किसने रोका

तेरे हाथ न आज कुछ है 

कल जो होगा होगा

महल चौबारे जो आज खड़े हैं 

है नज़रों का धोखा 

ये तेरी जागीर नहीं है 

जोड़ लें जितना पैसा


उठ जा कर अरमान तू पूरे 

कर ना दिल को भारी

कोई तेरा जो साथ न दे तो 

ख़ुद ले ज़िम्मेदारी 

ये बाज़ी कोई जीत सका ना 

सबने अंत में हारी

सबका अंत है एक सा प्यारे 

परजा हो या नेता 


राहुल उपाध्याय । 26 मई 2022 । सिएटल 


https://youtu.be/8QGTXF0DPw4


हमने पाई है महादेव की अनोखी मूरत

हमने पाई है महादेव की अनोखी मूरत

शांति हो, प्रेम हो, युद्ध घमासान न हो

सब के हैं शिव, शिव का सम्मान करो

उनकी भक्ति में कभी कोई व्यवधान न हो


शिव किसी एक के नहीं, एक के इष्ट नहीं 

एक शक्ति है जो सृष्टि को जोड़े रखती है 

ना ये हिन्दू, ना मुसलमां, ना मज़हब है कोई 

एक शक्ति है जो सृष्टि को जोड़े रखती है 


प्यार कोई रोग नहीं, प्यार आघात नहीं 

प्यार की छाँव में हर आग बुझा करती है 

प्यार के बोल ज़माने को सुनाओ तो ज़रा 

हरेक घाव-विवाद मुस्कान मिटा सकती है 


राहुल उपाध्याय । 26 मई 2022 । सिएटल 



आजकल रात को चाँद मिलता नहीं

आज कल रात को चाँद मिलता नहीं

रात भर रहता है ज़माने के साथ 

हम भी चाँद के हैं ऐसे गुलाम 

आस रखते भी हैं जान जाने के बाद


अपनी आँखों में उसको बसाया नहीं 

दूर भी लेकिन उससे मैं जाता नहीं 

जाने कैसा है उससे ये नाता मेरा

जान पाता नहीं ये छोटी सी बात


इसके-उसके हैं लफड़े हज़ारों यहाँ 

लड़ने-भिड़ने के हैं रंग हज़ारों यहाँ 

क्या करूँ क्या नहीं सोच पाता नहीं 

चार सू हो रही है कोई वारदात 


आय की बात मैं अब क्या ही करूँ 

आय आते ही होती हवा क्या करूँ 

आज कल हाथ में कुछ बचता नहीं

जाने जाती है वो किस-किस के साथ


राहुल उपाध्याय । 26 मई 2022 । सिएटल 

Wednesday, May 25, 2022

सारा-सारा दिन

सारा-सारा दिन यूँही गुज़रता है 

कभी कोई आता है

कभी कोई जाता है 


अमेज़ॉन वाला भी 

पैकेज नहीं ड्रॉप करता है 

थोड़ी देर रूकता है

कुछ न कुछ पूछता है 


घड़ी-घड़ी कोई न कोई आ ही जाता है 

घड़ी-घड़ी सीसीटीवी पे निगाह जाती है 


कभी कोई बालक ऊपर से कुछ पूछता है 

कभी नेटवर्क का भी लोचा होता है

कभी बिजली भी भाग जाती है 

इन्वर्टर पर लोड पड़ता है 

गर्मी जान लेने पे उतर आती है 

कभी कोई रोमियो चैट पे चाट जाता है 

खाना खाया? क्या खाया?

चलो कहीं चलते हैं 

दो प्रेमियों की तरह मिलते हैं 

एक और नम्बर ब्लॉक करना पड़ता है

चलते-फिरते ही खाना बनता है 

ख़ुद ही खाना है और किसको खिलाना है 


सारा-सारा दिन यूँही गुज़रता है 

कभी कोई आता है

कभी कोई जाता है 


कहूँ भी मन की तो कहूँ किससे?

क़िस्से दिन भर के सुलझाऊँ किससे?


डायरी भी लिख के मैंने देखा है

ख़ुद ही लिखो और ख़ुद ही पढ़ो 

इससे कहाँ कुछ होता है?

कोई पढ़ ले तो मुसीबत 

न पढ़े तो क्या फ़ायदा है 


सारा-सारा दिन यूँही गुज़रता है 

कभी कोई आता है

कभी कोई जाता है 


आईना भी मूक रहता है 

यूट्यूब ज़रूरत से ज़्यादा बोलता है 

व्हाट्सएप पे वही घिसीपिटी बातें हैं 


कुछ गाने हैं अज़ीज़ 

जो किसी को सुनाने हैं

पाँव में घूँघरू बाँध सुनाने हैं


रात होते ही दिल मचल जाता है 

जैसा है नहीं वैसा हो जाता है

कसक सी उठती है 

आँचल भी मेरा गिरता है 

जो नहीं था वही हो जाता है 


राहुल उपाध्याय । 25 मई 2022 । सिएटल 







जाने क्यों बाँटती रहती है वो यादें मुझसे

जाने क्यों बाँटती रहती है वो यादें मुझसे

रात को देर तलक करती है बातें मुझसे 


न है ये इश्क़, न मोहब्बत, न चाहत कोई 

एक मासूम की है मासूम लिखावट कोई 

पन्ने भरती है, सँवरती है, निखरती है 

थमा देती है बाँहों में अमानत कोई 


यक़ीं होता ही नहीं ऐसा भी कहीं होता है 

राज़ वो दिल का अक़ीदत से बयां होता है 

करती वो बात नहीं, दांत से फूल झरते हैं 

जैसे हूँ ताज मैं वो चाँद सी गुमां होता है 


जा के मैं चूम लूँ, छू लूँ हाथ उसके

उसके पलकों में पलूँ, रहूँ साथ मैं उसके

ऐसे ख़्वाबों की, तमन्नाओं की ज़रूरत क्या है 

जबकि हूँ साथ हर रात हर पहर मैं उसके


राहुल उपाध्याय । 25 मई 2022 । सिएटल 





Monday, May 23, 2022

लाखों क़िस्म के दायरे हमने बनाए हैं

लाखों क़िस्म के दायरे हमने बनाए हैं 

अपने उसूल-औ-ख़्वाब के द्वीप बनाए हैं 


नग़मे भी चाँदनी के, कुर्बत भी चाँद की बस चाँद, चाँद, चाँद ही हमको लुभाएँ है 


नज़रें हटें तो देखें भी कोई और पुरनूर

आँखों में जिसके प्यार हो, ग़म से लाख दूर

ऐसे विकल्प हमको कम रास आए हैं 


बरसों बरस बिताए हैं बर्तन लें हाथ में

कोई तो है जो आएगा रहने को साथ में 

ख़ुशबू-घटा-औ-चाँदनी कब हाथ आए हैं 


कुछ दिन तो इश्क़ का सरूर रहता है चूरचूर

फिर मसले ज़िन्दगी के करते हैं रोग दूर

पर्दे आशिक़ी पे दिल ने गिराए हैं


राहुल उपाध्याय । 23 मई 2022 । सिएटल 

https://youtu.be/ZEQdqjScIw0




Sunday, May 22, 2022

इश्क़

तुम पहली गर्लफ़्रेंड नहीं थी

जिससे ब्रेकअप हुआ था


तुमसे पहले भी कई हुए

तुम्हारे बाद भी कई होंगे


दूध का जला

छाछ को भी 

फूँक-फूँक के पीता है 


इश्क़ 

न दूध है

न छाछ है 

बस एक आग है

जिसमें न जला

तो फिर ख़ाक इश्क़ किया 


मैं 

जलता रहा हूँ 

जल रहा हूँ 

जलता रहूँगा 


मैं इश्क़ 

करता रहा हूँ 

कर रहा हूँ 

करता रहूँगा 


इससे बचने की 

बचकानी हरकत नहीं करूँगा 


राहुल उपाध्याय । 22 मई 2022 । सिएटल 


चाँद

चाँद 

साथ खाने लगे

पीने लगे

उठने लगे 

बैठने लगे

सोने लगे

नहाने लगे

तो

चाँद 

चाँद नहीं 

घर की मुर्ग़ी दाल बराबर है 


चाँद 

जब तक दूर है 

चाँद है

वरना शेर की माँद है 


राहुल उपाध्याय । 22 मई 2022 । सिएटल