Thursday, May 26, 2022

आजकल रात को चाँद मिलता नहीं

आज कल रात को चाँद मिलता नहीं

रात भर रहता है ज़माने के साथ 

हम भी चाँद के हैं ऐसे गुलाम 

आस रखते भी हैं जान जाने के बाद


अपनी आँखों में उसको बसाया नहीं 

दूर भी लेकिन उससे मैं जाता नहीं 

जाने कैसा है उससे ये नाता मेरा

जान पाता नहीं ये छोटी सी बात


इसके-उसके हैं लफड़े हज़ारों यहाँ 

लड़ने-भिड़ने के हैं रंग हज़ारों यहाँ 

क्या करूँ क्या नहीं सोच पाता नहीं 

चार सू हो रही है कोई वारदात 


आय की बात मैं अब क्या ही करूँ 

आय आते ही होती हवा क्या करूँ 

आज कल हाथ में कुछ बचता नहीं

जाने जाती है वो किस-किस के साथ


राहुल उपाध्याय । 26 मई 2022 । सिएटल 

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