आज कल रात को चाँद मिलता नहीं
रात भर रहता है ज़माने के साथ
हम भी चाँद के हैं ऐसे गुलाम
आस रखते भी हैं जान जाने के बाद
अपनी आँखों में उसको बसाया नहीं
दूर भी लेकिन उससे मैं जाता नहीं
जाने कैसा है उससे ये नाता मेरा
जान पाता नहीं ये छोटी सी बात
इसके-उसके हैं लफड़े हज़ारों यहाँ
लड़ने-भिड़ने के हैं रंग हज़ारों यहाँ
क्या करूँ क्या नहीं सोच पाता नहीं
चार सू हो रही है कोई वारदात
आय की बात मैं अब क्या ही करूँ
आय आते ही होती हवा क्या करूँ
आज कल हाथ में कुछ बचता नहीं
जाने जाती है वो किस-किस के साथ
राहुल उपाध्याय । 26 मई 2022 । सिएटल
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