Wednesday, May 25, 2022

जाने क्यों बाँटती रहती है वो यादें मुझसे

जाने क्यों बाँटती रहती है वो यादें मुझसे

रात को देर तलक करती है बातें मुझसे 


न है ये इश्क़, न मोहब्बत, न चाहत कोई 

एक मासूम की है मासूम लिखावट कोई 

पन्ने भरती है, सँवरती है, निखरती है 

थमा देती है बाँहों में अमानत कोई 


यक़ीं होता ही नहीं ऐसा भी कहीं होता है 

राज़ वो दिल का अक़ीदत से बयां होता है 

करती वो बात नहीं, दांत से फूल झरते हैं 

जैसे हूँ ताज मैं वो चाँद सी गुमां होता है 


जा के मैं चूम लूँ, छू लूँ हाथ उसके

उसके पलकों में पलूँ, रहूँ साथ मैं उसके

ऐसे ख़्वाबों की, तमन्नाओं की ज़रूरत क्या है 

जबकि हूँ साथ हर रात हर पहर मैं उसके


राहुल उपाध्याय । 25 मई 2022 । सिएटल 





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