ओ मेरे दिल-ए-नादां
जब चाहो चले आना
जिस दिन से गए हो तुम
खुल्ला है ये दरवाज़ा
धन-धान की क़ीमत पे
मिलती नहीं ख़ुशियाँ हैं
अपनों के बिना दुनिया
उजड़ी हुई बगिया है
जिस दिन ये समझ लो तुम
बेदाग़ चले आना
बर्बाद हुए जो दिन
बर्बाद नहीं हैं वो
विद्रोह बिना जीवन
जीवन तो नहीं है वो
जब राह कोई चुन ली
ओके है पलट जाना
राहुल उपाध्याय । 27 मई 2022 । सिएटल
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