मुझे वे मिल गए आख़िर
ख़ज़ाना हो तो ऐसा हो
मिली मूरत, खिली सूरत
नज़ारा हो तो ऐसा हो
कोई भी पोस्ट आती है
मेरी धड़कन बढ़ाती है
कभी ये आँख रोती है
कभी ये मुस्कुराती है
नहीं सुध-बुध मुझे कोई
धमाका हो तो ऐसा हो
मेरी आँखों में आँसू हैं
मगर आँसू ख़ुशी के हैं
अगरचे धाम है काशी
मगर वे हर कहीं पे हैं
नहीं कोई न जो उनका
सहारा हो तो ऐसा हो
कहीं भी जात हो कोई
कहीं भी पाँत हो कोई
नहीं कोई है ऐसी आँख
जो दुख से लाख न रोईं
सभी दुख में, सभी सुख में
हमारा हो तो ऐसा हो
राहुल उपाध्याय । 17 मई 2022 । सिएटल
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सुन्दर
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