अब क्या मिसाल दूँ मैं मेरी माँ के प्यार की
इंसान थी मगर थी कोई अवतार ही
सुबहा से ले के शाम तक आँचल था प्यार का
उसके ही प्यार से मिला गुलशन बहार का
वो थी तो ज़िन्दगी मैंने हँस के गुज़ार दी
घर से चला था सोच के आऊँगा लौट के
हुस्न-ओ-जमाल और तिजारत को छोड़ के
पर खे न सका नाव जबकि पतवार थी
उसने न दी सीख कभी कृष्ण-राम की
जीवन जीया हमेशा बस कर के काम ही
वो लौ भी थी कभी तो कभी थी बयार भी
राहुल उपाध्याय । 8 मई 2022 । सिएटल
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