जहाँ भी हो जहाँ में तुम वहाँ मैं काम आऊँगा
अगर भटके कभी पथ से तुम्हें मैं राह दिखाऊँगा
सुनोगे धुन कोई मीठी मुझे तुम पास पाओगे
करोगे जब भला कोई मुझे तुम पास पाओगे
तुम्हारे हाथ में हूँ मैं कहाँ मैं दूर जाऊँगा
कभी पाओगे गीता में, कभी मीरा के भजनों में
कभी भाई में पाओगे, कभी पाओगे बहनों में
हज़ारों हाथ हैं मेरे हज़ारों रूप में आऊँगा
धरम को है जहाँ ख़तरा जहाँ अधर्म छाया है
वहाँ भी पाओगे मुझको जहाँ होता न साया है
तुम्हारा हूँ मैं सम्बल तुम्हें कब छोड़ पाऊँगा
राहुल उपाध्याय । 12 मई 2022 । सिएटल
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