नग़मों में मेरे इतनी नज़ाकत नहीं थी
तुमसे जो हुई मुझे मोहब्बत नहीं थी
कविताओं में कितनों को कोसा है मैंने
प्रेम पर लिखना मेरी फ़ितरत नहीं थी
हज़ारों-हज़ार उठते-गिरते थे आँचल
बदन में हुई कभी इतनी हरारत नहीं थी
जब उमर थी कच्ची हम तब भी थे सीधे
जवानी में भी की इतनी शरारत नहीं थी
ढलती उमर में खूँटा लगता है छूटा
पहले मर-मिटने की इजाज़त नहीं थी
राहुल उपाध्याय । 14 मई 2022 । सिएटल
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