Saturday, May 7, 2022

मैं मौसीक़ी को मीत बनाता चला गया

मैं मौसीक़ी को मीत बनाता चला गया

हर भाव में हर गीत सुनाता चला गया


अपने जहां में नूर की एक बूँद भी न थी

फिर वो हुआ करम कि नहाता चला गया


शताब्दियों का ज़ुल्म भुलाना कठिन था

मैं घाव को मल्हम बताता चला गया 


जो जैसा था उसी को अपना समझ लिया

जो था वही सामने  आता चला गया


राहुल उपाध्याय । 6 मई 2022 । सिएटल 


https://youtu.be/KtlUhCjcYq4










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