Monday, May 16, 2022

वन्दनीय

वो क्या है?

मैं नहीं जानता


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यूँही कोई मिल गया था 

सरे राह चलते-चलते


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हम क्यूँ मिले?

कब मिले?

कहाँ मिले?

कैसे मिले?

इनका भी कोई सबब होगा?


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बताती है 

अपना दुख-दर्द 

हँसते-हँसते 


जी रही है 

अपने दम पर

हँसते-हँसते 


है भी निर्भर

और नहीं भी 


सुशील है

कुशल है

सर्वगुण सम्पन्न है

और विफलताओं से

जूझ रही है 


बताती है 

अपनी

हर असफलता 

हँसते-हँसते 

और कमर कस के 

फिर जुट जाती है 


देखता हूँ 

तो पाता हूँ 

कि वह

पारो

चंद्रमुखी 

निर्मला

सारे वन्दनीय पात्र

एक साथ है


ऐसा भी नहीं कि 

वह बढ़ा-चढ़ा कर या

काँट-छाँट कर बता रही है 

या जो मैं सुनना चाहता हूँ 

या जो वो सुनाना चाहती है

वही सुना रही है 


सब

जैसा है वैसा 

खोल कर रख देती है 


अजीब बात है 


उपन्यास कई पढ़ें हैं मैंने

यह पहला जीवन्त उपन्यास है 

जिसमें होकर भी 

मैं नहीं हूँ 


मेरा आशीर्वाद है उसे

मेरी शुभकामनाएँ हैं उसे

सारी दुआएँ न्योछावर हैं उस पर 


जो भी हो

सुखान्त हो


राहुल उपाध्याय । 16 मई 2022 । सिएटल 


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